Tuesday, March 30, 2010

ब्लॉगर प्रसाद का वजन बढ़ रहा है भाई!

बुजुर्गों ने कहा था बात में वजन पैदा करो। ऐसी पोस्ट लिखो कि बात निकले तो दूर तक जाए। ब्लॉगर प्रसाद ने कोशिश तो बहुत की, लेकिन बात में वजन बढ़ने की बजाय शरीर का वजन बढ़ने लगा। चार साल पहले जब ब्लॉग शुरु किया था तो 53 पर था। चार साल बाद 87 किलो का शरीर लेकर इधर से उधर डोलने वाला ब्लॉगर प्रसाद समझ नहीं पा रहा है कि बात का वजन जिस्म में कैसे प्रवेश कर रहा है? पहली बार उसे इस बात का अहसास हुआ है कि अब तक जितनी बातें उसने कही, उसमें तो वजन ही नहीं था...। उसके लिखे, कहे, बतियाये और गलियाये हर शब्दों का वजन कभी ग्राम तो कभी ओंस, कभी छटांक तो कभी पाउंड बनकर उसके शरीर में प्रवेश कर रहा था। वजन रहित शब्द, वजन रहित पोस्ट और वजन रहित विषय, माथा चकरा गया ब्लॉगर प्रसाद का। ये वजन भी एक किस्म का बकवास है, पहली बार सोचा उसने....लेकिन अब भी तो उसके जिस्म का वजन बढ़ रहा था। जबकि अब बात ब्लॉग पर ही नहीं साइट और अखबार के पन्नों पर हो रही थी..। एक से एक बहस...एक से एक विषय और एक से एक टिप्पणी करनेवाले...तो क्या अब भी उसकी बातों का वजन शिफ्ट हो रहा था?
पाठक गाली देते होंगे, उसने मन ही मन में सोचा। वैसे भी जिस अखबार में वो लिखता था, उसका वजन इतना कम था कि दूसरी मंजिल से उपर रहनेवालों तक हॉकर फेंक ही नहीं पाता था। बात में वजन नहीं अखबार इतना हल्का कि 10 फीट से उपर ही न जाए...। ब्लॉगर प्रसाद को खुद पर झुंझलाहट होने लगी...। तभी उसे याद आया अखबार न सही, हाथ में एक साईट तो है। लेकिन साईट में भी शब्द तो हल्के ही होंगे, सोचते ही उसके तेवर ठंडे पड़ गए...। तो क्या करें? सुबह की चाय पर सोचना शुरु किया...दोपहर के लंच तक कोई हल नहीं निकला...। सवाल यही कि शरीर का वजन कम हो तो बात में वजन पैदा हो...। जिम...एक्सरसाईज...मार्निंगवॉक...ये सब आईडिया आया था...लेकिन क्या गारंटी कि शरीर हल्का होते ही शब्द भारी हो जाएंगे। कहीं ऐसा न हो कि शरीर भी हल्का...और बात भी हल्की? ऐसे में तो साहित्यिक..गैर साहित्यिक विवाद का एक झौंका भऱ उसे उड़ा ले जाएगा...।
तो फिर क्या करें, पहली बार महानगर में रहते हुए ब्लॉगर प्रसाद ने खुद को असहाय पाया...।
बहुत सोचा, बहुतों से ज्ञान लिया...और आखिर उसे मिल गया एक फार्मूला....-" शऱीर का वजन बढ़ रहा है तो बढ़ने तो...लेकिन खुद मत लिखो..दूसरों को लिखने दो...और उस लिखे पर मुस्कुराओ...झगड़ा कराओ..गाली दिलवाओ...जरूरत पड़े तो कींचड़ उछालो...। तभी बात में वजन न भी हो तो महंती रहेगी बरकरार...।"
ब्लॉगर प्रसाद ने चैन की सांस ली...अब उसे इस बात की फिक्र नहीं थी कि उसके बात में वजन नहीं है। गर्व था इस बात पर कि उसके साईट पर...उसके ब्लॉग पर गालियां तो थीं...।
इसके साथ ही ब्लॉगर प्रसाद ने अपने वजन को खुला छोड़ दिया है....।
-देव प्रकाश चौधरी

3 comments:

  1. उन ब्लागरो की सूची बताएं जिनका वजन 87 किलो से ऊपर है .... हा हा हा

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  2. वाह भई , ये तो मन भी भारी करने वाली बात हो गयी ?

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