Monday, September 14, 2009

कौवे कविता नहीं करते...क्यों?

ब्लागर्स के लिए ये जानना क्यों जरूरी है कि कौवे कविता क्यों नहीं करते? आज तक इस सवाल का जवाब तो नहीं मिला कि कौवे काले क्यों होते है? अब कौवे कविता नहीं करते तो क्या फर्क पड़ता है,लेकिन हिदी के एक अभूतपूर्व कवि का कहना है कि फर्क पड़ता है...और हर ब्लागर्स का नैतिक दायित्व है कि वो कौवे को पहचाने और जाने कि कौवे कविता क्यों नहीं करते?

कवि ने कविता में चिड़ियों के लुप्त होने की बात कही, रिश्तेदारों ने कहा वाह-वाह। रात के खाने में चिकन था, रिश्तेदारों ने फिर कहा वाह-वाह। चित्रकार ने गैलरी मालिक को कुछ चित्र दिखाए, मालिक ने कोई आश्वासन नहीं दिया। कूड़ा फेंकने वाले ने पैसे बढ़ाने की बात की, मालकिन ने कहा, खुद फेंक लूंगी। प्रोफेसर ने दस रुपये किलो आम मांगा, चौदह रुपये किलो आम बेच रहे उस फेरीवाले ने कहा कि आप आम खाना ही बंद कर दें। मधुमेह से जूझ रहे प्रोफेसर ने राहत की सांस ली यानी कि एक करोड़ से अधिक मानव-आबादी और ठीक इसके आधे कुत्ता-आबादी (एक समाज विज्ञानी का मानना है कि यहां हर दो आदमी पर एक कुत्ता रहता है) वाले देश की राजधानी में सब ठीक-ठाक चल रहा था कि यह खबर जंगल में आग की तरह फैल गई- कवि ने मौन धारण कर लिया है। खबर का कहीं से खंडन नहीं आया तो रिश्तेदारों ने कारण टटोलने की कोशिश की।इस घटना के ठीक तीन साल पहले कवि ने कला आलोचना लिखनी बंद की थी। तब वे कला और कविता को एक साथ लेकर चलते थे। वाह। क्या दिन थे वे और क्या जलवे थे उनके। लोग उन्हें एक किस्म का महाबली कहते।जिधर निकल पड़ते, उधर प्रदर्शनी खुद लग जाती। प्रदर्शनी में देर शाम तक रुकते तो वे खुद दर्शनीय हो जाते। वे कम बोलते, ज्यादा सोचते। वे पहले कला आलोचक थे, जिन्होंने दूसरे की कला की आलोचना में अपनी कविता ठोंक देने का रिवाज चलाया। आलोचना का इतिहास लिख रहे एक साहित्यकार ने उन्हें कविता और कला के बीच का सेतु कहा। पुरस्कार मिले, नाम हुआ। किताब आई, लोगों ने कला देखने की कला सीखी। कवि मुग्ध हुए, रिश्तेदार तृप्त हुए। जिनकी कला पर कवि ने नहीं लिखा, वह कला की दुनिया में अछूत। जिनकी कला पर कवि ने लिख दिया, उनका कद इतना ऊंचा कि वह सबके लिए अछूत।।चित भी उनकी, पट भी उनकी। यानी कविता, कला और आलोचना की दुनिया में सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था कि महाबली कवि ने घोषणा कर दी कि अब वह आलोचना नहीं लिखेगा। रिश्तेदारों की सूरत ऐसी कि मानो गमी हो गई हो। सबने मनाया, कलाकारों ने हाथ-पांव जोड़े, पर कवि नहीं माना। हुआ यह था कि एक पेंटिंग में मौजूद केले का अर्थ कवि ने पूछा था। कलाकार ने कहा कि यह केला नहीं, हाथ की अंगुलियां है। कवि भड़के, कलाकार की कई पीढ़ियों ने केला खाना छोड़ दिया। कवि प्रदर्शनियों में जाते रहे, लेकिन लिखना छोड़ दिया।.....और अब कवि ने बोलना छोड़ दिया था।कवि की बात कवि ही जाने, पर रिश्तेदारों को पता चला कि इस बार कवि ने कौआ देख लिया है। कला में कौआ। वह भी एक चितेरी की कला में। वह भी शनिवार की शाम में।शाम के चार बजे थे। मौसम बेमतलब सुहाना था।महाबलि कवि के आने की सूचना हो गई थी।सब इंतजाम भी हो गए थे। महाबलि मंडी हाउस में ही था और मंडी हाउस की श्रीधाराणी कला दीर्घा में आना था, पर घर की मुर्गी होने की आशंका में महाबलि पहले आकाशवाणी गया। कुछ संभावित वार्ता पर विचार किया। लंबी बहस के बाद वह श्रीधाराणी पहुंचा। लोग ध्यन हुए। महाबलि मुग्ध हुआ। लटकते चित्रों को देखा। अपने अस्तव्यस्त कपड़ों को देखा। पानी पिया, पान खाया और ठीक उसी समयएक चित्र में कवि को कौआ दिखाई दिया।गौर से देखा, कौआ ही था। चश्मा पोंछकर देखा, कौआ ही था। चितेरी को पास बुलाया, इशारे से पूछा- "आपने यह कौआ क्यों बनाया?" महाबली का इशारा चितेरी के लिए अमूर्त कला से भी ऊंची कोई चीज नहीं थी, नहीं समझ पाया, पर नासमझी के माहौल में उसने पूछ लिया- "हर जगह के कौए काले ही क्यों होते हैं?" छोटी मुंह बड़ी बात!कवि ने बोलना छोड़ दिया। दिन बीते, महीने बीते, पर कवि ने बोलना शुरु नहीं किया।कउछ बोलने की कोशिश करते तो कौए याद आते।पर एक दिन कवि ने अपने एक रिश्तेदार कवि को फोन लगाया और कहा कि उसने महीनों बाद एक कविता लिखी है। उधर भगदड़ मच गई। मबाबलि ने कविता लिख ली...धन्य प्रभु...धन्य हो। फोन पर आवाज आई---"सुनाईये.....सुनाईये।"महाबलि का दिल बाग-बाग हो गया। लगा कि आवाज आसमान में सुराख कर देगी। कवि ने कविता पढ़ी......
" हर जगह के कौए काले होते हैं
कौए कविता नहीं करते
सोचो!हर जगह के कौए काले क्यों होते हैं?"
रिश्तेदारों ने फिर कहा-वाह...वाह!

-देव प्रकाश चौधरी

Saturday, September 12, 2009

एक ब्लागर्स का प्रेम पत्र पढ़कर...

एसएमएस के जमाने में एक ब्लॉगर ने लिखा है एक प्रेमपत्र। उस ब्लॉगर का नाम तो नहीं बताउंगा, लेकिन आप तय करें कि वो अश्लील है या सबके पढ़ने लायक। सवाल यह भी है कि ब्लॉगर्स की दुनिया में प्रेम बचा है क्या?


प्रिये!
बार बार क्यों पूछती हो कि तुम मुझे पसंद हो या नहीं? अरे बस चलता तो मेरा दिल क्लिक-क्लिक कर तुम्हें पसंद के सिंहासन पर परमानेंट बिठा देता, लेकिन अगर इस दिल को तुम कंप्यूटर मानती हो तो ये भी जान लो कि एक दिल से एक ही बार पसंद का आइटम क्लिक किया जा सकता है, अगर कोई ज्यादा क्लिक करता है तो जान लो जानेमन! वह झूठा है। समझ लो मोहल्ले में उसकी बदनामी तय है। तुम तो मुझे जानती हो.. अपने ब्लॉग की कसम आज तक मैंने किसी दूसरे की पोस्ट पर पसंद में क्लिक किया ही नहीं-अब तो मैंने तुम्हारे दिल के लिंक का एचटीएमएल कोड़ अपने दिल में पेस्ट कर लिया है...और एक ताला भी लगा दिया है। कल अपने कस्बे की सड़क पर दिखी थी,'थ्री-कॉलम' ब्लॉग की तरह चहक रही थी। लेकिन मैं जरा सा दवाई दुकान में क्या गया, तुम उसी तरह गायब हो गई जैसे ब्लॉगवाणी के पेज से पोस्ट गायब हो जाते हैं। मैं ढूंढता रहा, लेकिन तुम कहीं और चली गई थी। तुम यह भी पूछती हो कि मैं चिट्ठी क्यों नहीं लिखता...तो सुन लो। जब तक तुम्हारा पिता मॉडरेटर बना हुआ है, मैं कुछ भी लिखूं,तुम्हारे पास पहुंचेगा ही नहीं। उनको नौकरी पर जाने दो, रोज एक पोस्ट लिखूंगा...कोई टिप्पणी करे या न करे।
हां, तुमने पूछा था कि मैं अपने ब्लॉग पर क्या लिखता हूं...तो समझ में नहीं आ रहा कि मैं क्या जवाब दूं। अरी पगली कोई सोच कर थोड़े लिखता हूं। जो मन में आया लिख देता हूं।कई लोग पढ़ते भी हैं। ब्लॉग में कोई रोक-टोक थोड़े ही है। यह अपनी खेती है। जैसे अपने घर के आगे तुम्हें कोई कुछ रोपने से रोक सकता है क्या? वैसे ही ब्लॉग में जो मर्जी आए लिखो।
कल मैंने तुम्हारे उपर एक कविता लिखी है।ब्लॉग पर डालने से पहले पढ़ लोगी तो लगेगा कोई काम हुआ..क्योंकि यह कहना कठिन है कि ब्लॉग के पोस्ट को कौन पढ़ता है और कौन बिना पढ़े खिसक जाता है। मन से लिखी है कविता...
"बस चले तो बना दूं तुम्हें एचटीएमएल कोड!
फिर तुम्हें पढ़ नहीं सके कोई और।
तुम्हारी मुस्कान पर लगा दूं ऐसा ताला
कि कोई चोरी न कर पाए दोबारा।
अब तो तुम्हीं मेरी पोस्ट हो,तुम्हीं पसंद,
तुम्हीं टिप्पणी हो और तुम्हीं मेरी ट्रैफिक मैप।
मेरा ब्लॉग तू...मेरा प्रोफाइल तू
ब्लॉगवाणी भी तू, चिट्ठाजगत भी तू
तू कहे तो तुम्हारे मुहल्ले पर बना दूं एक ब्लॉग
तू कहे तो तुम्हारे कस्बे पर लिख दूं एक पोस्ट"

कैसी लगी कविता सच सच बताना। छुट्टी के दिन मैं पुलिया पर बैठा रहूंगा। तू ट्यूशन से लौटेगी तो तुम्हें उसी तरह निहारूंगा...जैसे कोई नया ब्लॉगर निहारता है ब्लॉगवाणी का पेज। और हां...पिताजी की छुट्टी कब पूरी होने वाली है? फौज वाले इतनी लंबी छुट्टी देते क्यों हैं। मुझे इतनी लंबी छुट्टी मिले तो मेरा कंप्यूटर रूपी दिल सदा के लिए हैंग कर जाए। मुझे याद रखना और पासवर्ड कभी नहीं भूलना।
तुम्हारा....
ब्लॉगर प्रसाद