Tuesday, October 20, 2009

सलामत रहे सलाहकार!

वे सलाह देने निकले हैं, अब तक नहीं लौटे। जाते-जाते पत्नी को सलाह दे गए थे,'रात में दरवाजा ठीक से बंद कर लेना।'दरवाजा तब से बंद है,खिड़की भी नहीं खुली,लेकिन वे नहीं लौटे हैं।खबर आई है कि वे सरकार को सलाह दे रहे हैं, 'ये करो, ये मत करो, ऐसा करो, वैसा करो,कुछ मत करो,चुप बैठो, खंडन करो,महिमामंडन करो।
सरकार चल रही है,उनकी सलाह दौड़ रही है और वे खुद टिके हुए हैं। सुनते हैं, जब तक रहेगी सरकार,वे देते रहेंगे सलाह।सलाह से लबालब भरे उनके दिमाग में सरकार ने कई पाइप डलवा दी है। किसी से बूंद-बूद टपकती है सलाह तो किसी से धार में बह रही है सलाह। विरोधी दलों में से किसी ने चाहा कि उन पाइपों में से छेद कर दिए जाएं तो कुछ सलाह उनके लिए भी निकल जाएं,लेकिन सरकार दूर की सोचती है। पहरे बिठा दिए गए हैं। सलाह निकालने वाली पाइप पर सरकारी पहरा! उनके दिमाग की सुरक्षा के लिए भी किए गए हैं जरूरी उपाय क्योंकि सरकार को सलाह चाहिए। बिना सलाह के सरकार बेकार है। विरोधी दल वाले कहेंगे, देखो-देखो, बिना सलाह के चल रही है सरकार।जनता कहेगी,ये कैसी सरकार है, जो सलाह लिए बगैर काम कर रही है।ऐसे संकटों से मुक्ति के लिए एक ही चारा था, नियुक्त करो सलाहकार। सैकड़ों नाम आए,लेकिन सब बेकार। असल नाम तो वह,जिसे दिल्ली तय करे। उन्होंने पहली सलाह थी सूबे के सीएम को। मुंह मत खोलो। सीएम हक्का-बक्का! बाप रे, मुंह न खोलेंगे तो खाएंगे क्या?

दिल्ली ने दूर के एक राज्य के लिए तय कर दिया एक नाम। सरकार की सलामती चाहते हो तो अमुकजी को ले जाओ। सलाह देने में ही बीती है उनकी जिंदगी। अमुकजी को सरकार से मिला न्यौता और वे निकल पड़े। उन्होंने पहली सलाह थी सूबे के सीएम को। मुंह मत खोलो। सीएम हक्का-बक्का! बाप रे, मुंह न खोलेंगे तो खाएंगे क्या? अमुकजी ने माथा पीट लिया। कैसे-कैसे लोगों से पाला पड़ा है, फिर सलाह दी,'सच्चा सीएम वही है, जो मुंह खोले बगैर खा ले, आंखें खोले बगैर देख ले,और बिना कोई कदम उठाए ही मीलों सफऱ तय कर ले।' सीएम को लगा कि वह किसी तपस्वी के चक्कर में फंस गया है, लेकिन जिस दिल्ली की बदौलत उसे कुर्सी मिली थी, उसी दिल्ली ने उसे सलाहकार भी दिया। सीएम चुप हो गया। सुनते हैं कि सीएम खूब खा रहा है, लेकिन किसी ने उसका मुंह चलते नहीं देखा। सीएम ने आंख बंद कर ली है,लेकिन सैकड़ों 'संजय' राज्य की व्यवस्था का आंखों देखा हाल सुनाने में व्यस्त हैं। यह भी सुनने में आ रहा है कि सीएम कोई कदम (न तो कड़ा और न ही हल्का) नहीं उठाता, फिर भी सरकार चल रही है। सरकार की उम्र भी कुछ कम नहीं, लेकिन सलाहकार सरकार को राजधानी की रफ्तार में दौड़ाना चाहते हैं। वे व्यस्त हैं।सरकार रहेगी तो वे व्यस्त ही रहेंगे। लेकिन दिल्ली में भी हो रहा है उनका इंतजार। दीपावली नजदीक है,श्रीमती को सलाह चाहिए। लेकिन वे हैं कि दिल्ली से दूर एक ऐसे सरकार के लिए अपने सलाह का खजाना खाली करने में जुटे हैं। वह जानते हैं कि पासा कोई भी फेंके, बिसात कोई भी बिछाए....सलाह की जरूरत बनी रहेगी, क्योंकि सरकार है...तो सलामत रहेंगे सलाहकार।
-देव प्रकाश चौधरी
( अमर उजाला में प्रकाशित)