वजन रहित शब्द, वजन रहित पोस्ट और वजन रहित विषय, माथा चकरा गया ब्लॉगर प्रसाद का। ये वजन भी एक किस्म का बकवास है, पहली बार सोचा उसने....लेकिन अब भी तो उसके जिस्म का वजन बढ़ रहा था। जबकि अब बात ब्लॉग पर ही नहीं साइट और अखबार के पन्नों पर हो रही थी..। एक से एक बहस...एक से एक विषय और एक से एक टिप्पणी करनेवाले...तो क्या अब भी उसकी बातों का वजन शिफ्ट हो रहा था?पाठक गाली देते होंगे, उसने मन ही मन में सोचा। वैसे भी जिस अखबार में वो लिखता था, उसका वजन इतना कम था कि दूसरी मंजिल से उपर रहनेवालों तक हॉकर फेंक ही नहीं पाता था। बात में वजन नहीं अखबार इतना हल्का कि 10 फीट से उपर ही न जाए...। ब्लॉगर प्रसाद को खुद पर झुंझलाहट होने लगी...। तभी उसे याद आया अखबार न सही, हाथ में एक साईट तो है। लेकिन साईट में भी शब्द तो हल्के ही होंगे, सोचते ही उसके तेवर ठंडे पड़ गए...। तो क्या करें? सुबह की चाय पर सोचना शुरु किया...दोपहर के लंच तक कोई हल नहीं निकला...। सवाल यही कि शरीर का वजन कम हो तो बात में वजन पैदा हो...। जिम...एक्सरसाईज...मार्निंगवॉक...ये सब आईडिया आया था...लेकिन क्या गारंटी कि शरीर हल्का होते ही शब्द भारी हो जाएंगे। कहीं ऐसा न हो कि शरीर भी हल्का...और बात भी हल्की? ऐसे में तो साहित्यिक..गैर साहित्यिक विवाद का एक झौंका भऱ उसे उड़ा ले जाएगा...।
तो फिर क्या करें, पहली बार महानगर में रहते हुए ब्लॉगर प्रसाद ने खुद को असहाय पाया...।
बहुत सोचा, बहुतों से ज्ञान लिया...और आखिर उसे मिल गया एक फार्मूला....-" शऱीर का वजन बढ़ रहा है तो बढ़ने तो...लेकिन खुद मत लिखो..दूसरों को लिखने दो...और उस लिखे पर मुस्कुराओ...झगड़ा कराओ..गाली दिलवाओ...जरूरत पड़े तो कींचड़ उछालो...। तभी बात में वजन न भी हो तो महंती रहेगी बरकरार...।"
ब्लॉगर प्रसाद ने चैन की सांस ली...अब उसे इस बात की फिक्र नहीं थी कि उसके बात में वजन नहीं है। गर्व था इस बात पर कि उसके साईट पर...उसके ब्लॉग पर गालियां तो थीं...।
इसके साथ ही ब्लॉगर प्रसाद ने अपने वजन को खुला छोड़ दिया है....।
-देव प्रकाश चौधरी



