एसएमएस के जमाने में एक ब्लॉगर ने लिखा है एक प्रेमपत्र। उस ब्लॉगर का नाम तो नहीं बताउंगा, लेकिन आप तय करें कि वो अश्लील है या सबके पढ़ने लायक। सवाल यह भी है कि ब्लॉगर्स की दुनिया में प्रेम बचा है क्या?
प्रिये!
बार बार क्यों पूछती हो कि तुम मुझे पसंद हो या नहीं? अरे बस चलता तो मेरा दिल क्लिक-क्लिक कर तुम्हें पसंद के सिंहासन पर परमानेंट बिठा देता, लेकिन अगर इस दिल को तुम कंप्यूटर मानती हो तो ये भी जान लो कि एक दिल से एक ही बार पसंद का आइटम क्लिक किया जा सकता है, अगर कोई ज्यादा क्लिक करता है तो जान लो जानेमन! वह झूठा है। समझ लो मोहल्ले में उसकी बदनामी तय है। तुम तो मुझे जानती हो.. अपने ब्लॉग की कसम आज तक मैंने किसी दूसरे की पोस्ट पर पसंद में क्लिक किया ही नहीं-अब तो मैंने तुम्हारे दिल के लिंक का एचटीएमएल कोड़ अपने दिल में पेस्ट कर लिया है...और एक ताला भी लगा दिया है। कल अपने कस्बे की सड़क पर दिखी थी,'थ्री-कॉलम' ब्लॉग की तरह चहक रही थी। लेकिन मैं जरा सा दवाई दुकान में क्या गया, तुम उसी तरह गायब हो गई जैसे ब्लॉगवाणी के पेज से पोस्ट गायब हो जाते हैं। मैं ढूंढता रहा, लेकिन तुम कहीं और चली गई थी। तुम यह भी पूछती हो कि मैं चिट्ठी क्यों नहीं लिखता...तो सुन लो। जब तक तुम्हारा पिता मॉडरेटर बना हुआ है, मैं कुछ भी लिखूं,तुम्हारे पास पहुंचेगा ही नहीं। उनको नौकरी पर जाने दो, रोज एक पोस्ट लिखूंगा...कोई टिप्पणी करे या न करे।
हां, तुमने पूछा था कि मैं अपने ब्लॉग पर क्या लिखता हूं...तो समझ में नहीं आ रहा कि मैं क्या जवाब दूं। अरी पगली कोई सोच कर थोड़े लिखता हूं। जो मन में आया लिख देता हूं।कई लोग पढ़ते भी हैं। ब्लॉग में कोई रोक-टोक थोड़े ही है। यह अपनी खेती है। जैसे अपने घर के आगे तुम्हें कोई कुछ रोपने से रोक सकता है क्या? वैसे ही ब्लॉग में जो मर्जी आए लिखो।
कल मैंने तुम्हारे उपर एक कविता लिखी है।ब्लॉग पर डालने से पहले पढ़ लोगी तो लगेगा कोई काम हुआ..क्योंकि यह कहना कठिन है कि ब्लॉग के पोस्ट को कौन पढ़ता है और कौन बिना पढ़े खिसक जाता है। मन से लिखी है कविता...
"बस चले तो बना दूं तुम्हें एचटीएमएल कोड!
फिर तुम्हें पढ़ नहीं सके कोई और।
तुम्हारी मुस्कान पर लगा दूं ऐसा ताला
कि कोई चोरी न कर पाए दोबारा।
अब तो तुम्हीं मेरी पोस्ट हो,तुम्हीं पसंद,
तुम्हीं टिप्पणी हो और तुम्हीं मेरी ट्रैफिक मैप।
मेरा ब्लॉग तू...मेरा प्रोफाइल तू
ब्लॉगवाणी भी तू, चिट्ठाजगत भी तू
तू कहे तो तुम्हारे मुहल्ले पर बना दूं एक ब्लॉग
तू कहे तो तुम्हारे कस्बे पर लिख दूं एक पोस्ट"
कैसी लगी कविता सच सच बताना। छुट्टी के दिन मैं पुलिया पर बैठा रहूंगा। तू ट्यूशन से लौटेगी तो तुम्हें उसी तरह निहारूंगा...जैसे कोई नया ब्लॉगर निहारता है ब्लॉगवाणी का पेज। और हां...पिताजी की छुट्टी कब पूरी होने वाली है? फौज वाले इतनी लंबी छुट्टी देते क्यों हैं। मुझे इतनी लंबी छुट्टी मिले तो मेरा कंप्यूटर रूपी दिल सदा के लिए हैंग कर जाए। मुझे याद रखना और पासवर्ड कभी नहीं भूलना।
तुम्हारा....
ब्लॉगर प्रसाद
Saturday, September 12, 2009
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आपको देख कर हार्दिक ख़ुशी हुई कि आप गाँव -देहात से यहाँ आयें हैं . आपकी पहले पोस्ट और ब्लॉग मेंलगी पेंटिंग्स देखकर अच्छा लगा . " तू ट्यूशन से लौटेगी तो तुम्हें उसी तरह निहारूंगा...जैसे कोई नया ब्लॉगर निहारता है ब्लॉगवाणी का पेज। " बिलकुल सही हम भी नए-नए में घंटो बैठकर ब्लोग्वानी को निहारा करते थे .
ReplyDeleteअच्छा लगा यह प्रेमपत्र ,
ReplyDeleteमज़ा भी आया !
इंटरनेट की दुनिया में
ReplyDeleteब्लॉगर बन कर प्रेम करते हो
बड़े नासमझ हो
ये क्या करते हो
समय का सवा सत्यानाश करते हो
टिप्पणियों का अचार परखते हो
पसंद पर चटका देते हो
जैसे कोई नैन मटकाता है
नैन मटकाना जैसे गलतफहमी बनाता है
न मटका होता है
न मटकना आता है
पर समय का पूरा
बाजा बज जाता है।
आंखों में पोस्ट
दिल में ख्याल बाकी रह जाता है
कीबोर्ड के द्वार को ऊंगलियां
खटखटाती हैं,
एक इंसान को
खटरागी बनाती हैं।
और यह वर्ड वेरीफिकेशन
प्रेम पत्र की दुनिया में
जायज नहीं है
इसे दूर करो ब्लॉग वालों ....
इसे दूर कर दो
अच्छा है..बहुत खूब..मजा आ गया।
ReplyDeleteये प्रम पत्र भी पूरी स्टाईल में रहा भाई..आनन्द आ गया ब्लॉगियाने का,
ReplyDelete.
ReplyDelete.
.
बढ़िया,
मजा आ गया मित्र...
ये मेरा प्रेम पत्र पढ कर,
ReplyDeleteके तुम नाराज़ न होना॥
बस यही एक हिम्मत का काम नही कर पाये वर्ना आज बजरंगबली के नही किशन कन्हैया के भक्त होते।
प्रेम की ऐसी मिसाल पहले ना देखि ना सुनी ..!!
ReplyDeleteबहुत खूब 'ब्लॉगर प्रसाद' -नाम भी छाँट कर रखा!
ReplyDeleteबहुत मजेदार पोस्ट !
-आप की पेंटिंग्स पसदं आयीं
कम्प्यूटराइज्ड और इन्टरनेटीय प्रेम पत्र पसन्द आया ब्लागर प्रसाद जी।
ReplyDeletehmm...
ReplyDeleteblogging se prem ?
ya prem se blogging?
kavita acchi lagi...
...aur haan padhi bhi
:)