बड़ा भाई अक्सर चुप रहता है।
वो कभी-कभी बोलता है। हमेशा आंख बंद कर बैठा रहता है।
बड़ा भाई सोच-समझकर बोलता है।
मीठी बातें बोलता है, कभी-कभी कड़ुवी भी, मगर कम बोलता है।
राजनीति में दूसरा होता है छोटा भाई। छोटा भाई हमेशा बोलता है। विषय कोई भी हो, बिना बोले रहता नहीं।
कभी चुप नहीं बैठता। छोटा भाई सिनेमा देखता है। छोटा भाई ठुमके लगाता है। छोटा भाई तलवार रखता है। छोटा भाई अपनी मूंछ की शान रखने के लिए जान देने की बात करता है। लेकिन राजनीति के बड़े भाई को मूंछ नहीं होती, न जान लेना है न देना है।
लेकिन छोटे भाई की आंखें भी बंद नहीं होती।
दो आंखों से हजारों लोगों के सपने देखता है छोटा भाई...।
राजनीति के अलावा फिल्मों में भी होता है एक बड़ा भाई।
वो बेहद बड़ा होता है। उसके सामने सब छोटे लगते हैं।
वो तीर्थयात्रा पर जाता है। उसके साथ छोटा भाई भी जाता है।
वो दुआएं मांगता है। छोटा भाई दुनिया को उन दुआओं के बारे में बताता है।
बात यहीं खत्म नहीं होती...क्योंकि फिल्मों में बड़ी भाभी भी होती है।
वो राजनीति के छोटे भाई के कहने पर फिल्में छोड़ देती है।
वो राजनीति में आ जाती है।
छोटा भाई कहता राजनीति से बेहतर एकिटिंग की कोई जगह नहीं।
भाभी मान जाती है।
राजनीति का बड़ा भाई खुश होता है। छोटा भाई गदगद।
धीरे-धीरे परिवार बनता है।
धीरे-धीरे माहौल बनता है।
धीरे धीरे छोटा भाई बड़ा होने लगता है।
अब वो और बोलने लगता है।
उसे शेरो-शायरी की लत भी लग जाती है।
वो दुश्मन को बातों से मारता है।
लेकिन छोटे भाई के उत्पात पर सवाल उठते हैं।
राजनीति का बड़ा भाई चुप रहता है। छोटे भाई को गालियां पड़ती हैं। बड़ा भाई आंख बंद कर लेता है। छोटा भाई खीझकर घऱ छोड़ने की धमकी देता है।
बड़ा भाई खर्राटे भरने लगता है।
धीरे-धीरे छोटा भाई बड़े भाई से अलग हो जाता है।
धीरे-धीरे बड़ा भाई छोटे भाई से अलग हो जाता है।
फिल्मी भाभी चुप रहती है। वो राजनीतिक झगड़े को एक्टिंग से ज्यादा कुछ नहीं समझती ।
छोटा भाई पुकारता है भाभी नहीं बोलती।
छोटा भाई रिश्ते की दुहाई देता है...भाभी गुमसुम रहती है।
धीरे-धीरे परिवार टूटता है....धीरे-धीरे छोटा भाई टूटता है।
वो ढूंढता है सहारा। छोटे भाई को चाहिए राजनीतिक संजीबनी।
वो निकल पड़ा है तलाश में।
उसे पता है राजनीति के किस पहाड़ पर सबसे उत्तम कोटि की संजीबनी बसती है।
छोटे भाई को मिलेगी संजीबनी...तो फिर बनेगा कोई बड़ा भाई।
--देव प्रकाश चौधरी
दो आंखों से हजारों लोगों के सपने देखता है छोटा भाई...।
राजनीति के अलावा फिल्मों में भी होता है एक बड़ा भाई।
वो बेहद बड़ा होता है। उसके सामने सब छोटे लगते हैं।
वो तीर्थयात्रा पर जाता है। उसके साथ छोटा भाई भी जाता है।
वो दुआएं मांगता है। छोटा भाई दुनिया को उन दुआओं के बारे में बताता है।
बात यहीं खत्म नहीं होती...क्योंकि फिल्मों में बड़ी भाभी भी होती है।
वो राजनीति के छोटे भाई के कहने पर फिल्में छोड़ देती है।
वो राजनीति में आ जाती है।
छोटा भाई कहता राजनीति से बेहतर एकिटिंग की कोई जगह नहीं।
भाभी मान जाती है।
राजनीति का बड़ा भाई खुश होता है। छोटा भाई गदगद।
धीरे-धीरे परिवार बनता है।
धीरे-धीरे माहौल बनता है।
धीरे धीरे छोटा भाई बड़ा होने लगता है।
अब वो और बोलने लगता है।
उसे शेरो-शायरी की लत भी लग जाती है।
वो दुश्मन को बातों से मारता है।
लेकिन छोटे भाई के उत्पात पर सवाल उठते हैं।
राजनीति का बड़ा भाई चुप रहता है। छोटे भाई को गालियां पड़ती हैं। बड़ा भाई आंख बंद कर लेता है। छोटा भाई खीझकर घऱ छोड़ने की धमकी देता है।
बड़ा भाई खर्राटे भरने लगता है।
धीरे-धीरे छोटा भाई बड़े भाई से अलग हो जाता है।
धीरे-धीरे बड़ा भाई छोटे भाई से अलग हो जाता है।
फिल्मी भाभी चुप रहती है। वो राजनीतिक झगड़े को एक्टिंग से ज्यादा कुछ नहीं समझती ।
छोटा भाई पुकारता है भाभी नहीं बोलती।
छोटा भाई रिश्ते की दुहाई देता है...भाभी गुमसुम रहती है।
धीरे-धीरे परिवार टूटता है....धीरे-धीरे छोटा भाई टूटता है।
वो ढूंढता है सहारा। छोटे भाई को चाहिए राजनीतिक संजीबनी।
वो निकल पड़ा है तलाश में।
उसे पता है राजनीति के किस पहाड़ पर सबसे उत्तम कोटि की संजीबनी बसती है।
छोटे भाई को मिलेगी संजीबनी...तो फिर बनेगा कोई बड़ा भाई।
--देव प्रकाश चौधरी
बहुत सटीक!
ReplyDeleteये सारे ही राजनैतिक दावपेच हैं, कब छोड़ दे और कब पकड़ ले। कभी नेहरु थे, फिर इंदिरा जी आयी, फिर दोस्त बने राजीव और अब छोटे भाई। अब कौन होगा? देखते रहिए।
ReplyDeleteVery good.Write on some village issues.
ReplyDeleteSudhanshu shekhar jha
sudhan0354@yahoo.com